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यूं तो देशभर में भगवान शिव के ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिरो का पूरा जाल है. इनका निर्माण वर्षो पहले राजा-महाराजाओ द्वारा कराया गया था. बेजोड़ वास्तुकला और मंदिरो का आकार ऐसा जटिल जिसे देखकर आज के भी इंजीनियर दंग रह जाएँ. वही इन मंदिरो के बाह्य और गर्भगृहों में बेहतरीन नक्काशी के साथ लगाई गई मूर्तिया भारतीय सनातन सभ्यता के समृद्धि को दर्शाती है. बात करे पाली स्थित महादेव मंदिर की तो इसका निर्माण 870-900 ई. के आसपास कराया गया था. इतिहासकारो के अनुसार इस महान मंदिर का निर्माण बाणवंशी राजा विक्रमादित्य ने कराया था. तब पाली का यह समूचा क्षेत्र बेहद समृद्ध, विकसित और रियासती केंद्र भी था. दिलचस्प यह है की इस मंदिर का निर्माण लाल बलुआ पत्थरो से किया गया है. यह पत्थर राजस्थान के जयपुर क्षेत्र से मंगाए गए थे. पूर्व अभिमुख वाले इस मंदिर में गर्भगृह के साथ अष्टकोणीय मंडप भी स्थित है जो पर्यटकों को सहज ही अपनी और आकर्षित करता है. देश के मशहूर इतिहासशोधक एवं पुरातत्वशास्त्री देवदत्त रामकृष्ण भंडारकर ने मंदिर के गर्भ गृह के द्वार की गणेश पट्टी पर लिखे बारीख अक्षरों को पढ़ पाने में कामयाबी पाई थी. लेख में लिखा था "महामंडलेशवर मालदेव ने यह देवालय का निर्माण कर कीर्तिदायक काम किया है"

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उपलब्ध साक्ष्य और इतिहासकारो के मुताबिक़ महादेव मंदिर के निर्माणकर्ता राजा विक्रमादित्य, महामंडलेश्वर मल्लदेव के बेटे थे. यही वजह है की अतः "जयमेरू" के रूप में उसकी पहचान बाण वंश के ही दूरे शिलालेखों के आधार पर की जाती रही है. जयमेरू का शासन 895 ईसवी तक रहा था. कलचुरी शासक जाजल्लदेव प्रथम नें 11 वीं सदी में पाली के शिव मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. मंदिर के अन्दर "श्रीमद जाजल्लादेवस्य कीर्ति रिषम" तीन जगहों पर खुदा हुआ है. मंदिर के चारों तरफ उकेरे गए शिल्प नयनाभिराम हैं. ऊपर की तरफ जहां देवी देवताओं को प्रदर्शित किया गया है, वहीं नीचे श्रृंगार रस से ओत प्रोत नायिकाओं को विभिन्न् मुद्राओं में खजुराहो की तर्ज पर प्रदर्शित किया गया है. इस मंदिर को लेकर कई तरह की किंविदंतियां यहां प्रचलित हैं. मंदिर के वास्तुशिल्प में इसका अष्ठकोणिय महामंडप बेहद अनूठा है. अनुमान है कि प्रवेश द्वार से लगा एक छोटा बरामदा रहा होगा जिसके बाद ही गुम्बद युक्त अष्ट कोणाकार महामंडप है. अंतराल और गर्भ गृह की ओर से जब गुम्बद को देखते हैं तो वह कई वृत्ताकार थरों से बना है और विभिन्न् आकृतियों से सजाया गया है. मंडप का आंतरिक भाग और स्तम्भ भी विभिन्न् देवी देवताओं, काव्यों में वर्णित पात्रों की कलाकृतियों से परिपूर्ण है. गर्भ गृह के द्वार का अलंकर भी अद्वितीय है.

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