आप जो भी चीजें अपने भोजन में शामिल करते हैं जैसे कि तेल, घी, वनस्पति घी से बनी हुई चीजें जो कि आपके पाचनतंत्र के माध्यम से अापके रक्त में चली जाती हैं और वे कुछ रासायनिक क्रिया करके जहरीले रसायन(toxic chemicals) में बदल जाती हैं, अब इनके जहरीले स्वभाव को कम करने के लिए हमारा लिवर और पाचनतंत्र काफी मेहनत करता है, अब लिवर ज्यादा काम करेगा तो स्वाभाविक है कि वह जल्दी खराब होगा, इसलिए हम सप्ताह में एक दिन उपवास रखते हैं ताकि हमारे यकृत को आराम मिले और फिर वह वापस आपने काम में लगे जाए।
कौन कौन से फायदे हैं उपवास के,
(1) रक्त की सफाई (detoxification of blood) – उपवास में आप न तो भोजन खाएँगे न हो जहरीले पदार्थ आपके रक्त में बनेंगे।
(2) वजन कम करने में सहायक(helpful in weight loss) – उपवास के दौरान भोजन न करने से आपके शरीर में नई कैलोरी नहीं बनेगी, जिससे आपका शरीर पहले से जमा कैलोरी का उपयोग करेगा, और आपका वजन कम होगा।
(3) मोटापा कम करने के लिए जरूरी – आपके शरीर में कैलोरी वसा (Fat) के रूप में इकट्ठी (store) हो जाती है, उपवास के दौरान वही वसा (Fat) उपयोग में लायी जाएगी और आपका मोटापा कम होगा।
(4) मधुमेह(diabetes) से छुटकारा – मधुमेह का कारण इंसुलिन(insulin) की कमि है, जो कि हमारे भोजन में शामिल गुल्कोज को पचाता (digest) है, उपवास करने से इंसुलिन के निर्माण में तेजी आती है जिससे मधुमेह(diabetes) का खतरा कम हो जाता है।
(5) इसके अलावा उपवास रक्त(Blood) में कोलेस्ट्रोल (cholesterol) की मात्रा(quantity) को भी नियंत्रित (control) करता है।
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कैसे करें उपवास्
उपवास और भूख हड़ताल को लेकर लोग अक्सर भ्रमित रहते हैं। भूख हड़ताल में कुछ भी खाया-पीया नहीं जाता है, जबकि उपवास का अर्थ पांच ज्ञानेंद्रियों और पांच कर्मेंद्रियों पर नियंत्रण से है। व्रत या उपवास में खाने-पीने पर रोक नहीं है, लेकिन वह अनुशासित होना चाहिए। वैदिक या आध्यात्मिक व्रत की चर्चा यजुर्वेद के कर्मकांड में भी की गई है। वैदिक उपवास कुछ और नहीं, बल्कि 24 घंटे तक शरीर और मस्तिष्क को सत्व की स्थिति में रखने की एक कोशिश है। यह कार्य समर्पण और अनुशासन के बिना हो पाना असंभव है। यह भी जरूरी है कि उपवास जबर्दस्ती नहीं, बल्कि आंतरिक प्रेरणा के तहत रखा जाए। साथ ही, उपवास के दौरान राजसी-तामसी वस्तुओं के इस्तेमाल से पूरा परहेज बरता जाए।
उपवास के दौरान किए जाने वाले अनुष्ठानों का भी व्यापक अभिप्राय है। असल में इस तरह के अनुष्ठानों से शरीर में पैदा होने वाले विषैले पदार्थों के प्रभाव को समाप्त किया जा सकता है। शारीरिक शुद्धि के लिए तुलसी जल, अदरक का पानी या फिर अंगूर इस दौरान ग्रहण किया जा सकता है। जबकि मानसिक शुद्दिकरण के लिए जाप, ध्यान, सत्संग, दान और धार्मिक सभाओं में भाग लेना चाहिए। उपवास के दौरान हिंसा और सेक्स से भरपूर दृश्यों और बातों से भी बचना चाहिए। इस प्रकार कह सकते हैं कि वैदिक उपवास शारीरिक, मानसिक और अंतःकरण के संपूर्ण शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। यह धारणा गलत है कि उपवास सिर्फ महिलाओं को ही करना चाहिए। उपवास का लाभ किसी भी उम्र के स्त्री-पुरुष उठा सकते हैं।
उपवास से धार्मिक अनुष्ठानों को इसलिए जोड़ा गया, ताकि स्वास्थ्य के पहलू पर ध्यान दिया जा सके। जैसे संतोषी मां का व्रत। शुक्रवार के दिन शादीशुदा महिलाएं यह व्रत रखती हैं और गुड़-चने का प्रसाद लेती हैं। गुड़ शरीर में आयरन (लोहा) की पूर्ति करता है, तो चने से प्रोटीन मिलता है।उपवास की प्रक्रिया सिर्फ कम खाने या सात्विक भोजन से ही पूर्ण नहीं हो जाती। इस दौरान सुबह-शाम ध्यान करना भी जरूरी है। इससे दिमाग शांत होता है और मन में सद्विचारों का प्रवाह होता है। उपवास की अवधि में न तो किसी का अहित सोचना चाहिए और न ही किसी से गलत व्यवहार करना चाहिए। सनातन धर्म में हर उपवास के अलग अलग नियम बनाये गए हैं जय से एकादशी,प्रदोष,पूर्णिमा अमावस्या नवरात्री इन सबके लिए अलग अलग विधान है क्यूंकि ये अलग तरह के मौसम और ऋतू में पड़ते हैं