आप किसी भी धार्मिक स्थल की इमारत को देख लें, सभी की इमारत में एक बात समान है और वह है इमारत के ऊपर बना गुंबद। मंदिर हो, गुरुद्वारा हो, मस्जिद हो या गिरजाघर, सभी धार्मिक स्थलों की इमारत के ठीक ऊपर आपको गुंबद जरूर दिखाई देगा।इसका आकार बेशक भिन्न हो सकता है, मंदिर का गुंबद कभी पूर्ण गोलाई तो कभी तिकोना होता है। गुरुद्वारे का गोलाकार होता है तथा मस्जिद का भी काफी हद तक गोलाकार ही होता है। लेकिन गिरजाघरों का गुंबद तिकोना एवं अधिक हाइट का होता है।आकार कैसा भी हो, परन्तु बड़ी समानता है इन धार्मिक स्थलों पर मौजूद गुंबद में। इस गुंबद का यहां होना एक बड़ा उद्देश्य साबित करता है। यह मात्र एक प्रथा एवं परम्परा ही नहीं है, बल्कि एक खास उद्देश्य से धार्मिक स्थलों की इमारतों को गुंबद का रूप प्रदान किया जाता है।केवल गुंबद ही नहीं, इमारत के अंदर इस्तेमाल होने वाली वस्तुएं, कलाकृति या कोई भी ऐसी चीज़ जो उस स्थान को एक धार्मिक रूप देती है, उसका एक अर्थ होता है। भगवान की मूर्ति या उनके प्रतीक को कहां रखना है इसका भी एक निश्चित स्थान होता है।
गुंबद का अर्थ:मान्यताओं या फिर वैज्ञानिक संदर्भ दोनों को मिलाकर यदि तथ्य उजागर किए जाएं तो ऐसा माना गया है कि जब एक इंसान भगवान के नाम का जाप या फिर पाठ-पूजा करता है तो उस समय उसके मस्तिष्क से कुछ तरंगें उत्पन्न होती हैं। यह तरंगे पवित्र हैं, जो फैलकर आसपास के वातावरण को भी वैसा ही बना देती हैं लेकिन जब हम खुले में बैठकर जाप करते हैं तो यह तरंगें कहीं रुक नहीं पातीं और वायु के साथ आकाश की ओर चली जाती हैं और ब्रह्मांड में कहीं खो जाती हैं। ऐसी मान्यता प्रसिद्ध है कि ईश्वर की आराधना करते समय हम उनसे जो पुकार करते हैं, तरंगों का रूप धारण कर उन तक पहुंचती हैं।और हमारी कामना पूरी हो जाए इसके लिए उन तरंगों का हम तक वापस आना जरूरी है। लेकिन यदि हम खुले में बैठकर जाप करेंगे तो वह तरंगें वायु से मिलकर ब्रह्मांड की ओर प्रस्थान कर लेती हैं और मार्ग ना मिलने के कारण वहीं खो जाती हैं।
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इसीलिए बनते हैं गुंबद:यही कारण है कि धार्मिक स्थलों का आकार गुंबद की तरह निर्मित किया गया है। मान्यतानुसार यह गुंबद एक धार्मिक स्थल के भीतर एक छोटे आकाश का काम करते हैं, जैसे आकाश पृथ्वी को चारों तरफ से छूता प्रतीत होता है उसी तरह मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और गिरजाघरों में गुंबद नामक एक छोटा आकाश निर्मित किया जाता है।इस आकाश के नीचे आप जो भी प्रार्थना और मंत्रोच्चारण करेंगे, गुंबद उसे वापस लौटा देगा। सिख धर्म की मान्यता के अनुसार भगवान का स्थान सबसे ऊंचा होता है। सिख गुरुद्वारों में जहां भी भगवान का स्थान होता है उसके ऊपर कोई भी मंजिल नहीं बनाई जाती है।सिख लोगों का मानना है कि जिस स्थान पर भगवान विराजमान हैं उसके ऊपर कोई अन्य मंजिल हो तथा आम मनुष्य उसे चलने-फिरने के लिए इस्तेमाल करे यह भगवान का निरादर करने के समान है। इसलिए गुरुद्वारों में भगवान के स्थान के ठीक ऊपर ही गुंबद बनाया जाता है।
वैज्ञानिक कारण:वैज्ञानिक संदर्भ से जहां भगवान का स्थान होता है वहां से ऐसी तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो मस्तिष्क को पवित्रता प्रदान करती हैं। किसी धार्मिक स्थल का यही एक ऐसा स्थान होता है जो सबसे ज्यादा तरंगें उत्पन्न करता है, इसलिए यदि इसी स्थान के ठीक ऊपर गुंबद बना हो तो यह अधिक लाभकारी होता है। यह गुंबद अपने आकार के इस्तेमाल से पूर्ण इमारत में वह तरंगें फैला देता है, जो वहां बैठे श्रद्धालुओं तक भी पहुंचती हैं। इसके अलावा मंदिर में भगवान की अन्य मूर्तियां, दीवारों पर लगी धार्मिक तस्वीरें, चित्र तथा कलाकृतियां इन तरंगों को उस इमारत से बाहर नहीं जाने देतीं।शायद यही कारण है कि एक धार्मिक स्थल का वातावरण हमेशा ही शांत एवं मन तथा मस्तिष्क को शांति प्रदान करने वाला होता है। कहते हैं कि प्राचीन समय में लोग अपने घर बनाते समय इसी प्रकार से गुंबद का इस्तेमाल करते थे। राजा-महाराजाओं के किले में भी कई सारे गुंबद होते थे।